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Israeli News- इजरायली सरकार ने शिन बेट प्रमुख रोनेन बार के पदमुक्ति को मंजूरी दी, विरोध के बावजूद

By Sagar

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Israeli News- इजरायली सरकार ने शिन बेट प्रमुख रोनेन बार के पदमुक्ति को मंजूरी दी, विरोध के बावजूदइजरायल की सरकार ने देश की सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसी शिन बेट के प्रमुख रोनेन बार को उनके पद से हटाने का फैसला किया है। यह निर्णय उस समय आया है जब देश भर में इस कदम के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार के इस फैसले को लेकर राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा क्षेत्र में गहन बहस छिड़ गई है। कई लोग इसे सरकार की “निरंकुश नीतियों” का प्रतीक मान रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष का कहना है कि यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखकर लिया गया है।

शिन बेट और रोनेन बार का महत्व

शिन बेट (इजरायल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी) देश की सबसे संवेदनशील खुफिया संस्थाओं में से एक है, जिसका प्राथमिक दायित्व आतंकवाद रोकथाम, जासूसी विरोधी गतिविधियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है। रोनेन बार ने 2021 में इस एजेंसी की कमान संभाली थी और उनके कार्यकाल में कई बड़ी सुरक्षा चुनौतियों का सामना किया गया, जिनमें पश्चिमी तट और गाजा पट्टी में हिंसा का बढ़ना, इजरायल के अंदरूनी इलाकों में आतंकी हमले, और ईरान समर्थित समूहों की गतिविधियाँ शामिल हैं। हालांकि, उनकी नीतियों और कार्यशैली को लेकर सरकार और सेना के भीतर मतभेद उभरने लगे थे।

पदमुक्ति के कारण: सरकार का पक्ष

सरकार ने बार के खिलाफ कई आरोप गिनाए हैं:

  1. सुरक्षा चूक: पिछले दो वर्षों में कुछ प्रमुख आतंकी घटनाओं को रोकने में शिन बेट की विफलता, जिसमें 2023 का “जेनिन हमला” शामिल है, जहां 10 इजरायलियों की मौत हुई थी।
  2. राजनीतिक हस्तक्षेप: बार पर सरकार की नीतियों के खिलाफ जनमत बनाने और सेना के साथ तालमेल की कमी का आरोप।
  3. खुफिया तंत्र में विफलता: हमास और हिज़बुल्लाह जैसे समूहों की गतिविधियों की सटीक जानकारी न दे पाना।
  4. निजी आचरण: कथित तौर पर बार ने कुछ निर्णयों में “अहंकार” दिखाया और सहयोगियों के साथ संवादहीनता बरती।

प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व वाली सरकार का दावा है कि यह फैसला “राष्ट्रहित में” लिया गया है और शिन बेट को एक नए नेतृत्व की आवश्यकता थी। हालांकि, विपक्षी नेता यायर लापिड ने इसे “सत्ता का दुरुपयोग” बताया है।

जनता का गुस्सा: विरोध प्रदर्शनों का दौर

सरकार के इस फैसले के खिलाफ इजरायल के प्रमुख शहरों—तेल अवीव, येरुशलम, और हाइफा—में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बार की पदमुक्ति “राजनीतिक बदला” है, क्योंकि वह सरकार की कुछ नीतियों के आलोचक रहे हैं। उदाहरण के लिए, बार ने पश्चिमी तट में यहूदी बस्तियों के विस्तार का विरोध किया था, जो नेतन्याहू सरकार के एजेंडे का अहम हिस्सा है।

कुछ प्रदर्शनकारियों ने बार को “देशभक्त” और “सक्षम नेता” बताते हुए उनके समर्थन में नारे लगाए। सोशल मीडिया पर #SaveShinBetChief ट्रेंड कर रहा है, जहां युवाओं से लेकर सेना के पूर्व अधिकारियों तक ने सरकार के फैसले की निंदा की है।

राजनीतिक विश्लेषण: क्या है गहराई में?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सिर्फ सुरक्षा चूक से आगे की राजनीति को दर्शाता है। नेतन्याहू सरकार पिछले कुछ समय से न्यायपालिका सुधारों को लेकर विवादों में घिरी है, जिसके खिलाफ देश में ऐतिहासिक विरोध हुए हैं। कुछ का कहना है कि सरकार शिन बेट जैसी एजेंसियों पर अपना नियंत्रण मजबूत करके “लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर” कर रही है।

दूसरी ओर, शिन बेट के भीतर भी असंतोष की खबरें हैं। कुछ अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि बार का नेतृत्व “अत्यधिक केंद्रित” और “लचीलेपन से रहित” था, जिससे एजेंसी की कार्यक्षमता प्रभावित हुई। हालांकि, इन आरोपों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भी ध्यान खींचा है। अमेरिकी विदेश विभाग ने “चिंता” जताते हुए इजरायल से लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने का आग्रह किया है। वहीं, फिलिस्तीनी नेताओं ने इस फैसले को “आंतरिक झगड़ा” बताया है, जो इजरायल की सुरक्षा नीतियों में बदलाव का संकेत दे सकता है।

भविष्य के प्रभाव

रोनेन बार की जगह अभी तक किसी नए प्रमुख की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन संभावित उम्मीदवारों में शिन बेट के वरिष्ठ अधिकारी रामी अमर और यारिव लेविन के नाम चर्चा में हैं। विश्लेषकों का मानना है कि नया नेतृत्व सरकार के प्रति अधिक वफादार होगा, जिससे खुफिया एजेंसी की स्वायत्तता खत्म हो सकती है।

इसके अलावा, यह घटना इजरायल की सुरक्षा प्रतिष्ठान में गहरे विभाजन को उजागर करती है। सेना और खुफिया एजेंसियों के बीच तनाव बढ़ने से देश की सुरक्षा तंत्र प्रभावित हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब ईरान और हमास के साथ तनाव चरम पर है।

निष्कर्ष: लोकतंत्र बनाम सुरक्षा

रोनेन बार का मामला इजरायल में “लोकतंत्र और सुरक्षा” के बीच चल रही बहस को गहरा करता है। एक तरफ, सरकार का दावा है कि सुरक्षा एजेंसियों को राजनीतिक दबाव से मुक्त होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर, विरोधियों को लगता है कि सरकार संवैधानिक संस्थाओं को नियंत्रित करके अपनी सत्ता बचाना चाहती है।

इस विवाद का समाधान अगले कुछ हफ्तों में होने वाले घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा। यदि सरकार विरोधों को नजरअंदाज करती है, तो देश के भीतर अशांति बढ़ सकती है। वहीं, अगर नया शिन बेट प्रमुख सुरक्षा स्थिति सुधारने में विफल रहता है, तो नेतन्याहू सरकार को भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।

फिलहाल, इजरायल की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह फैसला देश की सुरक्षा मजबूत करेगा या लोकतांत्रिक ढांचे को और कमजोर।

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